(Barbarik Kon Tha) हेलो दोस्तो! प्रसिद्ध खाटू श्याम जी के बारे में तो आपने जरूर सुना होगा, वहां जाकर पूजा अर्चना भी कइयों ने की होगी और अगर अब तक नही की तो करना तो चाहते ही होंगे। इतनी श्रध्दा है उस पवित्र स्थान की भक्त का मन उधर खींचा चला जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यहां विराजमान खाटू श्याम जी कौन हैं और इस स्थान का इतिहास क्या है।
दरअसल इस स्थान में महाभारत काल के वीर पांडु पुत्र भीमसेन के पौत्र बरबरिक का सिर है जो खाटू श्याम के नाम से पूजनीय है। हैरान होने की जरूरत नही है, आज के इस आर्टिकल में हम ये जानेंगे की Barbarik Kon Tha और आखिरकार बरबरिक को खाटू श्याम के नाम से क्यों जाना जाता था।
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इस बारे में भी आज हम जाएंगे। दोस्तों ऐसे बहुत सारे योद्धा है जिन्होंने अपनी कर्म से एक नई इतिहास बनाएंगे और उन्हीं सभी योद्धा में एक नाम बरबरिक का भी है तो आज हम इसी योद्धा के बारे में पूरी जानकारी जानेंगे तो आए दोस्तो में आपको इन्ही वीर बरबरिक के बारे में बताते हैं।
बरबरिक का परिचय | Barbarik Kon Tha
अपने वनवास काल में पांडु पुत्र भीम ने जंगल में एक राक्षसी कन्या हिडिम्बा से विवाह किए था जिनसे उन्हें एक पुत्र प्राप्त हुआ। यह पुत्र महान घटोत्कक्ष के नाम से प्रसिद्ध हुआ। कालांतर में घटोत्कक्ष ने मौरवी नामक कन्या से विवाह किया था। बरबरिक इन्ही घटोत्कक्ष और मौरवी का पुत्र था। इस प्रकार बरबरिक पांडु पुत्र भीम के पोते थे।
अगर देखा जाए तो बरबरिक पांडू पुत्र भीम के होते हैं और बरबरिक के पिता जी का नाम घटोत्कक्ष है और माता जी का नाम मौरवी है। बरबरिक एक काफी महान योद्धा थे इनके पास इतनी ताकत थी कि अगर यह चाहते तो चिट्ठियों में महाभारत जैसे युद्ध को समाप्त कर सकते थे।
और तो और इन्होंने बहुत कठिन 503 ऐसे महान मान प्राप्त किए थे जिसका इस्तेमाल करके लिए पूरे ब्रहमांड को नष्ट कर सकते थे लेकिन इन्होने ऐसा नहीं किया इन्होंने प्रण लिया कि यह अपनी जिंदगी को बहुत ही साधारण तरीके से जिएंगे और हिंसा बिल्कुल भी नहीं करेंगे।
बरबरिक का महान प्रण
एक बार बाल्यकाल में बरबरिक ने अपनी माता से पूछा कि जीवन का वास्तविक अर्थ किसमे है। इस पर उनकी माता ने कहा
“दुर्बल की सहायता करना ही जीवन का असली मतलब होता है”
अपनी माता के इस वाक्य से वे इतने प्रभावित हुए की उन्होंने ये संकल्प ले लिया कि वे आजीवन कमजोर का ही साथ देंगे।
बरबरिक की शक्तियां
जब महाभारत का युद्ध शुरू हुआ तो उसमें अनेक वीर योद्धा थे जो अकेले ही युद्ध को समाप्त कर सकते थे। भीष्म पितामह इस युद्ध को बीस दिनों में खत्म कर सकते थे तो गुरु द्रोण इसे पच्चीस दिनों में। कर्ण अकेले चौबीस दिनों में इस युद्ध को समाप्त कर सकता था वहीं गांडीव धारी अर्जुन इसे मात्र अट्ठारह दिनों में समाप्त कर सकते थे। लेकिन वहां एक योद्धा ऐसा भी था जो अपने सिर्फ तीन बाणों से इस युद्ध को समाप्त कर सकते थे।
बरबरिक ने अपनी तपस्या से तीन ऐसे बाण प्राप्त किए थे जिनसे वह एक क्षण में पूरे महाभारत युद्ध को खत्म कर सकते थे। लेकिन उन्होंने जो प्रण लिया था कि वह सदैव ही दुर्बल का साथ देंगे, उस प्रण ने श्री कृष्ण को भी दुविधा में डाल दिया था।
बरबरिक का शक्ति परीक्षण
भगवान श्री कृष्ण बरबरिक के तीन तीरों का सच जानने के लिए उनके पास गए। उन्होंने बरबरिक को एक पीपल का पेड़ दिखाते हुए कहा कि इसके सभी पत्ते को भेद दो। भगवान कृष्ण ने उनकी परीक्षा लेने के लिए एक पत्ते को अपने पैरों के नीचे दबा लिया।
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जब बरबरिक ने एक तीर चलाया तो वह पीपल के पेड़ के सभी पत्तों को चिन्हित करने के बाद भगवान कृष्ण के पैरों के नीचे दबे पत्ते को छेद करने के लिए उनके पैरों को जख्मी करने लगा। श्री कृष्ण ने जैसे ही अपना पैर हटाया, तीर ने उसे भी चिन्हित कर दिया। इसके बाद बरबरिक ने दूसरा बाण चलाया तो सारे चिन्हित पत्तों में एक साथ छेद हो गए और वे सभी पेड़ से नीचे आ गिरे।
बरबरिक के कारण हुई दुविधा
बरबरिक के तीनों तीरों का वरदान यह था कि जब वे अपना पहला तीर चलाएं तो वे सभी चिन्हित हो जाते जिन्हें वे बचाना चाहते थे। दूसरे तीर से वे सभी चिन्हित हो जाते जिन्हें वे मारना चाहते थे। और तीसरे तीर से पहले तीर से चिन्हित को छोड़कर बाकी सभी खत्म हो जाते।
इसके साथ ही जब महाभारत युद्ध हो रहा था तब लगभग उस काल के सभी राजाओं ने किसी न किसी पक्ष से युद्ध मे भाग लिया था। जब बरबरिक का प्रश्न उठा तो एक सवाल मन मे आया कि बरबरिक यदि कौरवों के के तरफ से युद्ध करे तो एक पल में पांडव दुर्बल हो जाएंगे।
अगले ही पल अपने प्रण के अनुसार उन्हें पांडवो के पक्ष से युद्ध करना होगा। और अगर इसी प्रकार चलता रहा तो युद्ध कभी समाप्त ही नही होगा।
बरबरिक का शीश दान
इसी दुविधा में सभी फंसे हुए थे बरबरिक के इस प्रण का क्या हल निकाला जाए। लेकिन जहां मुरली मनोहर खुद उपस्थित हों वहां कैसी दुविधा। श्री कृष्ण ने एक ब्राह्मण का वेश धारण किया और चल पड़े बरबरिक से भिक्षा मांगने। वचन बद्ध बरबरिक से भगवान ने दान में उनका सिर मांग लिया और बरबरिक ने भी खुशी खुशी अपना सिर भगवान को समर्पित कर दिया।
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लेकिन बरबरिक ने भगवान कृष्ण से बस इतनी ही प्रार्थना की कि वे इस युद्ध को अपनी आंखों से देखना चाहते हैं। भगवान कृष्ण उनके इस भक्ति भाव से अति प्रसन्न हुए।
माँ जगदम्बा से उन्होंने प्रार्थना की और उन्होंने अपनी शक्तियों से बरबरिक के कटे हुए सिर को अजर अमर कर दिया और उन्हें यह वरदान भी दिया कि जब तक यह धरती रहेगी, वह खाटू श्याम के नाम से पूजे जाएंगे। बरबरिक का सिर उसी स्थान पर एक ऊंचाई पर स्थापित किया गया, जहां से उन्होंने पूरे युद्ध को अपनी आंखों से देखा।
महाभारत का परिणाम
युद्ध के बाद जब पांडव उनके पास गए और उनसे पूछा को युद्ध मे उन्होंने क्या देखा तो बरबरिक ने कहा कि युद्ध मे तो बस भगवान कृष्ण का सुदर्शन ही चल रहा था। अर्जुन के तीरों ने नहीं बल्कि श्री कृष्ण के सुदर्शन ने ही सभी को मारा है।
अर्जुन के तीर तो बस उन्हें घायल ही कर पा रहे थे। जहां भगवान श्री कृष्ण स्वयं उपस्थित हो वहां पराजय तो हो ही नही सकती। ऐसी अद्भुत विलक्षण प्रतिभा थी उस महावीर के पास में।
FAQ on Barbarik Kon Tha
Q1. बर्बरीक की मृत्यु कैसे हुआ?
बरबरिक की मृत्यु भगवान श्री कृष्ण के हाथो हुई। भगवान ने बरबरिक से दान में उनका सिर मांग लिया था।
Q2. बर्बरीक पिछले जन्म में कौन था?
बरबरिक पिछले जन्म में सूर्यवर्चा नाम का यक्ष था, जो भगवान ब्रह्मा के श्राप के कारण दैत्य कुल में पैदा हुआ था।
Q3. बर्बरीक की माता का नाम क्या था?
बरबरिक की माता का नाम मौरवी था जो मूर दैत्य की पुत्री थी।
Q4. खाटू श्याम भगवान कौन है?
खाटू श्याम भगवान महाभारत काल के पांडु पुत्र भीम के पौत्र बरबरिक है। इस स्थान में उनका सिर है जो कि भगवान श्री कृष्ण ने काट डाला था। बाद में उसी सिर को माँ जगदम्बा ने श्री कृष्ण की आज्ञा पर ही जीवित कर अमरता का वरदान दिया था
Conclusion
अपने इस लेख के जरिए हमने आपको महाभारत युद्ध के वीर बरबरिक के जीवन के बारे में बताते हुए उनकी शक्तियों के बारे में भी बताया है। आपको यह भी जानकारी प्राप्त हुई कि खाटू श्याम के रूप में आज हम इन्ही को पूजते हैं।
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अंत में हम बस इतना ही कहना चाहेंगे कि इतनी शक्तियों के बावजूद जो अपना सिर सिर्फ एक पुकार पर ही समर्पित कर दे वह कोई सामान्य मनुष्य तो हो ही नहीं सकता। हमारी आशा है कि हमारा यह लेख आपको पसंद आया होगा और खाटू श्याम जाने की इच्छा ने भी आपके मन मे जगह बना ली होगी।